Madhu Arora

Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -अस्तित्व

अस्तित्व
बचपन से खुद को बांटती रही,
कतरा -कतरा  लोगों से जुड़ती रही।
यह बात सिर्फ मेरी नहीं ,
सभी की आपबीती है।

तेरी ,मेरी, उसकी, ।
सबकी, मैं कहती रही
हमारा अस्तित्व क्या है,
शायद यही सोचती रही।

जिंदगी शायद सजा ही नहीं,
सोचूं क्या कुछ मुझे पता नहीं।
कितनी हिस्सों में बंटी हूं मैं,
कोई हिस्सा मेरा है ही नहीं।

जन्म लिया, विवाह हुआ।
बच्चे हुए ,विवाह किया।
उनके भी हुए बच्चे,
क्या मेरी यात्रा पूर्ण हुई।

हमारी यात्रा पूर्ण कहांँ
शायद अपुर्ण रह गई।
खुद के अस्तित्व में
कहीं विलीन हो गई।
        रचनाकार ✍️
        मधु अरोरा
         25.8.२०२२

#प्रतियोगिता हेतु 

   26
13 Comments

Seema Priyadarshini sahay

27-Aug-2022 03:49 PM

बहुत खूबसूरत

Reply

Ajay Tiwari

26-Aug-2022 08:53 PM

Very nice

Reply